!! हनुमानाष्टक !!
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों !
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो !
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो !
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो !!
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो !
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो !
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो !!
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो !
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो !
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो !!
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो !
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो !
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो !!
बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो !
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो !
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो !!
रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो !
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो !
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो !!
बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो !
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो !
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो !!
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो !
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो !
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो !!
!! दोहा !!
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर !
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर !!