त्रेतायुग की बात बताऊ
गोदावरी नदी तट पर
राम लखन सीता रहते थे
पंचवटी था उनका घर
अरे देवी सीता के कहने पर
राम चले हिरना लाने
कोऊ समझ नही पावे
यह लीला केवल विधी जाने
लीला केवल विधि जाने
लखन लाल पहरा देते थे
राम भटकते थे वन मे
हिरना दिखा रहा था च्चल बल
राम नाम सुमरे मन मे
अरे मृग से फिर मारीच हो गयवा
टेर लगाई हा लक्ष्मण
धीरे से श्री राम कहा
और त्यागा नीच अपवन तन
त्यागा नीच अपवन तन
मैया सीता घबराई
और बोली लक्ष्मण से वाणी
संकट मे है तुम्हारे भैया
जाने विधि ने क्या ठनी
अरे लक्ष्मण रही रही समझा रहे
तू धीरज राखो मात यहा
कच्छ ना होइए भैया को
संकट कैसा जब राम वाहा
संकट कैसा जब राम वाहा
त्रिया हट से हारे लक्ष्मण
बान से एक खींची रेखा
धनुष बान ले चले वीर बार
पर राम छवि अंतर देखा
राम छवि अंतर देखा
माता ना रेखा लांघना
मैं जा रहा रघुवर जहा
जो भी निकट आया
चीता जल जाएगी उसकी यहा
चीता जल जाएगी उसकी यहा
सुध बुध खो बैठा सिकंदर
देख रूप की ख़ान सिया
आँखे छूंढिया गयी रावण की
पर छल बल ने जगा दिया
अरे साधु भेष मे था लंका पति
सीता थी भोली भली
भिक्षा देने को हाथो मे
कंदमूल फल ले आई
कंदमूल फल ले आई
कपटी रावण बोला
मैं कैसे भिक्षा लू बँधी हुई
बाहर आकर भिक्षा दो
या मैं जाता हू रूपमयी
अरे सकूचाई सीता पहले
देवर के वचन याद आए
फिर देखा सीता ने साधु
अलख निरंजन दोहराए
अलख निरंजन दोहराए
बिन भिक्षा को लिए
कहीं सन्यासी घर से चला गया
अपयश होगा रघुकुल का
सोचा बाहर पग बढ़ा दिया
झपट कर फेंका कमंडल
थम सीता को लिया
बोली तड़प कर जानकी
रे दुष्ट आते है पिया
गरज कर रावण हंसा
धरती की छाती डोलती
विवश सीता रो रही
आ राम रघुवर बोलती
आ राम रघुवर बोलती
हाथ पकड़ कर अपने रात पर
सीता जी को बिता लिया
हाथ हांस करता लंका पति
अब लंका की ओर चला
अब लंका की ओर चला
सीता हरण हुई गावा भैया
पर या धरती नही फटी
कदम कदम पर रावण बैठा
आज हू सीता जात हरी
बिन देश शीश के कितने रावण
अब भारत मे घूमत है
तन के उजरे मन के काले
अब समाज मा रोज पूजे
अब समाज मा रोज पूजे
कितनी बार ज़रा यह रावण
पर रति भर जला नही
यह फूँके ते का होइए
जब तक ना जन्मेहि राम कहीं
जब तक ना जन्मेहि राम कहीं
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