छोटा मोरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज बहाँ बोया गया ।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया नि:शेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फुटतीं
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।
गुजराती कविता हिन्दी में : उमाशंकर जोशी
Gujrati Poetry in Hindi : Umashankar Joshi
Pingback: बगुलों के पंख – BhaktiBhajan.Org